Wednesday, July 25, 2012

Rooth ke humse kabhi..


Rooth ke humse kahin 
jab chale jaaoge tum.
Rooth ke humse kahin
jab chale jaaoge tum
Ye na sochaa tha kabhi 
itne yaad aaoge tum.
Rooth ke humse kahin 
jab chale jaoge tum
Rooth ke humse kahin..


Main to na chala tha
do kadam bhi tum bin,
ohhh Phir bhi mera bachpan
yehi samjhe har din.
Chhod ke mujhe bhala
ab kahan jaoge tum,
Chhod ke mujhe bhala
ab kahan jaoge tum,
Ye na socha tha kabhi 
itne yaad aaoge tum.
Rooth ke humse kahin 
jab chale jaoge tum.
Rooth ke humse kahin...


Baaton kabhi haathon 
se bhi maara hai tumhein
ohhh "gyan jee",
 Sada yeh hi kehke 
hi pukaara hai tumhein.
Kya kar loge mera
jo bigad jaoge tum.
Kya kar loge mera
jo bigad jaoge tum
Ye na socha tha kabhi 
itne yaad aaoge tum.
Rooth ke humse kahin 
jab chale jaoge tum.
Rooth ke humse kahin.....


Dekho mere aansoo
yehi karte hai pukaar,
ohh Aao chale aao
mere bhai mere gyan.
Pochne aansoo mere
kya nahin aaoge tum.
Pochne aansoo mere
kya nahin aaoge tum,
Ye na socha tha kabhi itne yaad aaoge tum
Rooth ke humse kahin jab chale jaoge tum
Rooth ke humse kahin......


Source: "Movie- Jo Jita Wahi Sikandar". 

Monday, October 3, 2011

सूरदास के पद : श्रीकृष्ण बाल चरित्र:

1.

हरि पालनैं झुलावै

जसोदा हरि पालनैं झुलावै।

हलरावै दुलरावै मल्हावै जोइ सोइ कछु गावै॥

मेरे लाल को आउ निंदरिया काहें न आनि सुवावै।

तू काहै नहिं बेगहिं आवै तोकौं कान्ह बुलावै॥

कबहुं पलक हरि मूंदि लेत हैं कबहुं अधर फरकावैं।

सोवत जानि मौन ह्वै कै रहि करि करि सैन बतावै॥

इहि अंतर अकुलाइ उठे हरि जसुमति मधुरैं गावै।

जो सुख सूर अमर मुनि दुरलभ सो नंद भामिनि पावै॥

2.

मुख दधि लेप किए

सोभित कर नवनीत लिए।

घुटुरुनि चलत रेनु तन मंडित मुख दधि लेप किए॥

चारु कपोल लोल लोचन गोरोचन तिलक दिए।

लट लटकनि मनु मत्त मधुप गन मादक मधुहिं पिए॥

कठुला कंठ वज्र केहरि नख राजत रुचिर हिए।

धन्य सूर एकौ पल इहिं सुख का सत कल्प जिए॥

कबहुं बढैगी चोटी

3.

मैया कबहुं बढैगी चोटी।

किती बेर मोहि दूध पियत भइ यह अजहूं है छोटी॥

तू जो कहति बल की बेनी ज्यों ह्वै है लांबी मोटी।

काढत गुहत न्हवावत जैहै नागिन-सी भुई लोटी॥

काचो दूध पियावति पचि पचि देति न माखन रोटी।

सूरदास त्रिभुवन मनमोहन हरि हलधर की जोटी॥

4.

दाऊ बहुत खिझायो

मैया मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।

मो सों कहत मोल को लीन्हों तू जसुमति कब जायो॥

कहा करौं इहि रिस के मारें खेलन हौं नहिं जात।

पुनि पुनि कहत कौन है माता को है तेरो तात॥

गोरे नंद जसोदा गोरी तू कत स्यामल गात।

चुटकी दै दै ग्वाल नचावत हंसत सबै मुसुकात॥

तू मोहीं को मारन सीखी दाउहिं कबहुं न खीझै।

मोहन मुख रिस की ये बातैं जसुमति सुनि सुनि रीझै॥

सुनहु कान बलभद्र चबाई जनमत ही को धूत।

सूर स्याम मोहिं गोधन की सौं हौं माता तू पूत॥

5.

मैं नहिं माखन खायो

मैया! मैं नहिं माखन खायो।

ख्याल परै ये सखा सबै मिलि मेरैं मुख लपटायो॥

देखि तुही छींके पर भाजन ऊंचे धरि लटकायो।

हौं जु कहत नान्हें कर अपने मैं कैसें करि पायो॥

मुख दधि पोंछि बुद्धि इक कीन्हीं दोना पीठि दुरायो।

डारि सांटि मुसुकाइ जशोदा स्यामहिं कंठ लगायो॥

बाल बिनोद मोद मन मोह्यो भक्ति प्राप दिखायो।

सूरदास जसुमति को यह सुख सिव बिरंचि नहिं पायो॥

6.

हरष आनंद बढावत

हरि अपनैं आंगन कछु गावत।

तनक तनक चरनन सों नाच मन हीं मनहिं रिझावत॥

बांह उठाइ कारी धौरी गैयनि टेरि बुलावत।

कबहुंक बाबा नंद पुकारत कबहुंक घर में आवत॥

माखन तनक आपनैं कर लै तनक बदन में नावत।

कबहुं चितै प्रतिबिंब खंभ मैं लोनी लिए खवावत॥

दुरि देखति जसुमति यह लीला हरष आनंद बढावत।

सूर स्याम के बाल चरित नित नितही देखत भावत॥

7.

भई सहज मत भोरी

जो तुम सुनहु जसोदा गोरी।

नंदनंदन मेरे मंदिर में आजु करन गए चोरी॥

हौं भइ जाइ अचानक ठाढी कह्यो भवन में कोरी।

रहे छपाइ सकुचि रंचक ह्वै भई सहज मति भोरी॥

मोहि भयो माखन पछितावो रीती देखि कमोरी।

जब गहि बांह कुलाहल कीनी तब गहि चरन निहोरी॥

लागे लेन नैन जल भरि भरि तब मैं कानि न तोरी।

सूरदास प्रभु देत दिनहिं दिन ऐसियै लरिक सलोरी॥

8.

अरु हलधर सों भैया

कहन लागे मोहन मैया मैया।

नंद महर सों बाबा बाबा अरु हलधर सों भैया॥

ऊंच चढि चढि कहति जशोदा लै लै नाम कन्हैया।

दूरि खेलन जनि जाहु लाला रे! मारैगी काहू की गैया॥

गोपी ग्वाल करत कौतूहल घर घर बजति बधैया।

सूरदास प्रभु तुम्हरे दरस कों चरननि की बलि जैया॥

9.

कबहुं बोलत तात

खीझत जात माखन खात।

अरुन लोचन भौंह टेढी बार बार जंभात॥

कबहुं रुनझुन चलत घुटुरुनि धूरि धूसर गात।

कबहुं झुकि कै अलक खैंच नैन जल भरि जात॥

कबहुं तोतर बोल बोलत कबहुं बोलत तात।

सूर हरि की निरखि सोभा निमिष तजत न मात॥

10.

चोरि माखन खात

चली ब्रज घर घरनि यह बात।

नंद सुत संग सखा लीन्हें चोरि माखन खात॥

कोउ कहति मेरे भवन भीतर अबहिं पैठे धाइ।

कोउ कहति मोहिं देखि द्वारें उतहिं गए पराइ॥

कोउ कहति किहि भांति हरि कों देखौं अपने धाम।

हेरि माखन देउं आछो खाइ जितनो स्याम॥

कोउ कहति मैं देखि पाऊं भरि धरौं अंकवारि।

कोउ कहति मैं बांधि राखों को सकैं निरवारि॥

सूर प्रभु के मिलन कारन करति बुद्धि विचार।

जोरि कर बिधि को मनावतिं पुरुष नंदकुमार॥

11.

गाइ चरावन जैहौं

आजु मैं गाइ चरावन जैहौं।

बृन्दावन के भांति भांति फल अपने कर मैं खेहौं॥

ऐसी बात कहौ जनि बारे देखौ अपनी भांति।

तनक तनक पग चलिहौ कैसें आवत ह्वै है राति॥

प्रात जात गैया लै चारन घर आवत हैं सांझ।

तुम्हारे कमल बदन कुम्हिलैहे रेंगत घामहि मांझ॥

तेरी सौं मोहि घाम न लागत भूख नहीं कछु नेक।

सूरदास प्रभु कह्यो न मानत पर्यो अपनी टेक॥

12.

धेनु चराए आवत

आजु हरि धेनु चराए आवत।

मोर मुकुट बनमाल बिराज पीतांबर फहरावत॥

जिहिं जिहिं भांति ग्वाल सब बोलत सुनि स्त्रवनन मन राखत।

आपुन टेर लेत ताही सुर हरषत पुनि पुनि भाषत॥

देखत नंद जसोदा रोहिनि अरु देखत ब्रज लोग।

सूर स्याम गाइन संग आए मैया लीन्हे रोग॥

13.

मुखहिं बजावत बेनु

धनि यह बृंदावन की रेनु।

नंदकिसोर चरावत गैयां मुखहिं बजावत बेनु॥

मनमोहन को ध्यान धरै जिय अति सुख पावत चैन।

चलत कहां मन बस पुरातन जहां कछु लेन न देनु॥

इहां रहहु जहं जूठन पावहु ब्रज बासिनि के ऐनु।

सूरदास ह्यां की सरवरि नहिं कल्पबृच्छ सुरधेनु॥

14.

कौन तू गोरी

बूझत स्याम कौन तू गोरी।

कहां रहति काकी है बेटी देखी नहीं कहूं ब्रज खोरी॥

काहे कों हम ब्रजतन आवतिं खेलति रहहिं आपनी पौरी।

सुनत रहति स्त्रवननि नंद ढोटा करत फिरत माखन दधि चोरी॥

तुम्हरो कहा चोरि हम लैहैं खेलन चलौ संग मिलि जोरी।

सूरदास प्रभु रसिक सिरोमनि बातनि भुरइ राधिका भोरी॥

15.

मिटि गई अंतरबाधा

खेलौ जाइ स्याम संग राधा।

यह सुनि कुंवरि हरष मन कीन्हों मिटि गई अंतरबाधा॥

जननी निरखि चकित रहि ठाढी दंपति रूप अगाधा॥

देखति भाव दुहुंनि को सोई जो चित करि अवराधा॥

संग खेलत दोउ झगरन लागे सोभा बढी अगाधा॥

मनहुं तडित घन इंदु तरनि ह्वै बाल करत रस साधा॥

निरखत बिधि भ्रमि भूलि पर्यौ तब मन मन करत समाधा॥

सूरदास प्रभु और रच्यो बिधि सोच भयो तन दाधा॥